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नज़्म
जावेद के नाम
उठा न शीशागरान-ए-फ़रंग के एहसाँ
सिफ़ाल-ए-हिन्द से मीना ओ जाम पैदा कर
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
मस्जिद-ए-क़ुर्तुबा
पर्दा उठा दूँ अगर चेहरा-ए-अफ़्कार से
ला न सकेगा फ़रंग मेरी नवाओं की ताब
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
गरचे है दिल-कुशा बहुत हुस्न-ए-फ़रंग की बहार
ताएरक-ए-बुलंद-बाम दाना-ओ-दाम से गुज़र
अल्लामा इक़बाल
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नज़्म
हिण्डोला
ब-क़ौल शाएर-ए-मुल्क-ए-फ़रंग हर बच्चा
ख़ुद अपने अहद-ए-जवानी का बाप होता है
फ़िराक़ गोरखपुरी
कहानी
प्रेमचंद
ग़ज़ल
ख़ीरा न कर सका मुझे जल्वा-ए-दानिश-ए-फ़रंग
सुर्मा है मेरी आँख का ख़ाक-ए-मदीना-ओ-नजफ़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
किस ने कहा कि टूट गया ख़ंजर-ए-फ़रंग
सीने पे ज़ख़्म-ए-नौ भी है दाग़-ए-कुहन के साथ