aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "پبلک"
सौलत पब्लिक लाइब्रेरी, रामपुर (यू. पी.)
पर्काशक
दिल्ली पब्लिक लाइब्रेरीम, देहली
योगदानकर्ता
सरदार शहर पब्लिक लाइब्रेरी
ख़ुदा बख़्श पब्लिक लाइब्रेरी, रामपुर
पब्लिक की आवाज़, लखनऊ
अर्शिया पब्लिकेशन्स, दिल्ली
हरदयाल म्युनिसिपल पब्लिक लाइब्रेरी, दिल्ली
अख़्तर हसन मेमोरियल पब्लिक वेलफेयर सोसाइटी, मथूरा
पब्लिक प्रेस, मुरादाबाद
पब्लिक प्रेस, जालंधर
हज़रत शाह वलीउल्लाह पब्लिक लाइब्रेरी, दिल्ली
दि पब्लिक अफ़ेयर्स सेक्शन, नई दिल्ली
न्यू पब्लिक प्रेस, दिल्ली
पब्लिक लाईबरेरी, कोलकाता
कराची पब्लिक एजुकेशन सोसाइटी, कराची
इसके बाद फिर हम से राय तलब न की गयी और हमारे वालिद, हेड-मास्टर साहब, तहसीलदार साहब इन तीनों ने मिल कर ये फैसला किया कि हमें लाहौर भेज दिया जाये। जब हमने यह खबर सुनी तो शुरू शुरू में हमें सख़्त मायूसी हुई, लेकिन इधर-उधर के लोगों से लाहौर...
बुजु़र्गाना नसीहतों के बाद कुछ दुआ'इया कलमात की बारी आई। बंसीधर ने सआदत-मंद लड़के की तरह ये बातें बहुत तवज्जोह से सुनीं और तब घर से चल खड़े हुए। इस वसीअ' दुनिया में जहाँ अपना इस्तिक़लाल, अपना रफ़ीक़, अपनी हिम्मत, अपना मददगार और अपनी कोशिश अपना मुरब्बी है लेकिन अच्छे...
ख़ूबसूरती मेरे नज़दीक वो ख़ूबसूरती है जिसकी दूसरे बुलंद आवाज़ में नहीं बल्कि दिल ही दिल में तारीफ़ करें। मैं उस सेहत को बीमारी समझता हूँ जो निगाहों के साथ पत्थर बन कर टकराती रहे। राजकिशोर में वो तमाम ख़ूबसूरतियाँ मौजूद थीं जो एक नौजवान मर्द में होनी चाहिऐं। मगर...
चारपाई पर सूखने के लिए अनाज फैलाया जाएगा। जिसपर तमाम दिन चिड़ियाँ हमले करती, दाने चुगती और गालियां सुनती रहेंगी। कोई तक़रीब हुई तो बड़े पैमाने पर चारपाई पर आलू छीले जाएंगे। मुलाज़िमत में पेंशन के क़रीब होते हैं तो जो कुछ रुख़्सत-ए-जमा हुई रहती है उसको लेकर मुलाज़िमत से...
क्या शायरी की पहचान मुम्किन है? अगर हाँ, तो क्या अच्छी और बुरी शायरी को अलग अलग पहचानना मुम्किन है? अगर हाँ, तो पहचानने के ये तरीक़े मारुज़ी हैं या मोज़ूई? यानी क्या ये मुम्किन है कि कुछ ऐसे मेयार, ऐसी निशानियां, ऐसे ख़वास मुक़र्रर किए जाएं या दरयाफ़्त किए...
पब्लिकپبلک
Public
सौलत पब्लिक लाइब्रेरी के पचास बरस
सय्यद नज़रुल हसन क़ादरी
Catalogue Of Persian & Arabic Manuscripts Of Saulat Public Library
आबिद रज़ा बेदार
पाण्डुलिपि
Catalogue Of The Arabic And Persian Manuscripts In The Khuda Bakhsh Oriental Public Library Patna
Public Safety Razor
इब्राहिम जलीस
गद्य/नस्र
Ashiq Public Library Sambhal
जलाल अफ़्सर संभली
टिप्पणी
रामपुर की सूलत पब्लिक लाइब्रेरी में महफ़ूज़ उर्दू रिसाइल
मोहम्मद ज़ुबैर
Payam-e-Insaniyat
अबुल हसन अली नदवी
इस्लामियात
Maharaja Public Library Jaipur
महिमा चंद्र सेन
संकलन
fehrist Arabic-o-farsi-o- Urdu
Tareekh-e-Siyasiyat
सर फ्रेडेरिक पोलाक
Kamiyabiyon Ke Sal Publice Sector
अननोन ऑथर
इतिहास
Report Oriental Public Library Patna
ख़ुदा बख़्श ख़ाँ
कैटलॉग / सूची
Nawadir-e-Khuda Bakhsh Public Library
सय्यद अहसन शेर
Palak Na Maro
यूसूफ़ नाज़िम
अफ़साना
पब्लिक ऐसी फिल्में चाहती हैं जिनका ताल्लुक़ बराह-ए-रास्त उनके दिल से हो। जिस्मानी हिसिय्यात से मुताल्लिक़ चीज़ें ज़ियादा देरपा नहीं होतीं मगर जिन चीज़ों का ताल्लुक़ रूह से होता है, देर तक क़ायम रहती हैं।...
पब्लिक में ज़रा हाथ मिला लीजिए मुझ सेसाहब मिरे ईमान की क़ीमत है तो ये है
इंदिरा उसकी ख़ूबियों से काफ़ी मुतअस्सिर थी और जब वो उससे बातें करती तो सब कुछ भूल कर उसे महज़ एक ज़रीआ-ए-तफ़रीह समझने लगती। ताहम गूँगी को इसकी कोई शिकायत न थी... कोई शिकवा न था। (2)...
“शुमाली मिस्र का ताज सुर्ख़। जुनूबी का सफ़ेद। और फ़िरऔन सूरज देवता, रह का बेटा है”, कातिब ने उसे बताया। सूरज के लिए बत्तख़ की शक्ल बना कर उसके बीच में नुक़्ता लगा दिया और पानी पीने के लिए उठा। “सहीफ़ा-ए-मुतव्वफ़ीन में बयालिस अख़्लाक़ी अहकाम दर्ज हैं” सौस ने कहा।...
یہ تو پبلک کے مولوی صاحب ہوئے، اب ہمارے مولوی صاحب کو دیکھئے۔ آئیے میرے ساتھ چوڑی والوں سے چلئے۔ چوڑی والوں سے نکل کر چاوڑی میں آئیے۔ الٹے ہاتھ کو مڑ کر قاضی حوض پر سے ہوتے ہوئے، سر کی والوں پر سے گزر کر لال کنویں پہنچئے۔ آگے...
आनंद! रात कितनी ही बैत चुकी है। लेकिन मुझे बिल्कुल नींद नहीं। दिल में एक हैजान सा बरपा है। एक आग सी लगी हुई है और जी चाहता है इस आग की लिपटों को सब तरफ़ फैला दूँ ताकि ज़ुल्म और जौर की क़ुव्वतें पलक झपकते जल-भुन कर राख हो...
شوہر پرست بیوی، پبلک پسند لیڈی ’’شوہر پرست بیوی‘‘ اور ’’پبلک پسند لیڈی‘‘ ان دو لفظوں کے کوزہ میں کیسا مشرق و مغرب کا سمندر سمو دیا ہے، مشرق کا منتہائے نظر تو خدمت کا تھا، زچہ خانہ اور باورچی خانہ کا۔ اور مغرب کے ہاں ناچ کا ہے، بال...
हमारे अख़बार का नाम आसमान है पेशानी पर ये मिसरा मुंदर्ज है कि ‘आसमान बादल का पहले खुर्फ़ा देरीना है’ इस फ़िक़रे को हटाने की कोई सब एडिटर कोशिश न फ़रमाएं क्योंकि ये ख़ुद हमारे प्रोप्राइटर साहिब का इंतिख़ाब है। हमने शुरू-शुरू में उनसे पूछा भी था कि साहिब इस...
(माख़ूज़ अज़ तज़्किरा-ए-हाली सफ़ा 195 ता 198) मौलाना हाली अंग्रेज़ी मुतलक़ नहीं जानते थे, एक आध बार सीखने का इरादा किया, न हो सका। लेकिन हैरत ये है कि मग़रिबी तालीम-ओ-तहज़ीब के मंशा को जैसा कि वो समझते थे उस वक़्त बहुत से अंग्रेज़ तालीम याफ़्ता भी नहीं समझते थे।...
अब ये पूछो कि ये मियाँ ए'ज़ाज़ के पल्ले बाँधना नसीबे का खुलना समझा जा रहा था। लेकिन किशोरी ने भी तय कर लिया था कि ऐ'न ब्याह के मौक़े' पर वो इंकार कर देगी। बरात में एक हड़बोंग मच जाएगी। वो जैसा कि सोशल फ़िल्मों में होता है कि...
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