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ग़ज़ल
ये ग़म नहीं है कि अब आह-ए-ना-रसा भी नहीं
ये क्या हुआ कि मिरे लब पे इल्तिजा भी नहीं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
दिल की आह-ए-ना-रसा सू-ए-फ़लक जाती है कब
ख़्वाहिशें कितनी भी पूरी हों ललक जाती है कब
सलमान ग़ाज़ी
नज़्म
आह-ए-ना-तमाम
क्या कहूँ 'शाहिद' किसी से थी ये ऐसी ग़म की शाम
दिल में सोज़-ए-ना-मुकम्मल लब पे आह-ए-ना-तमाम
शाहिद सागरी
ग़ज़ल
असर किया है ये ऐ आह-ए-ना-रसा कैसा
वो मुझ पे रात को उल्टा हुआ ख़फ़ा कैसा