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ग़ज़ल
मुझे कब किसी की उमंग थी मिरी अपने आप से जंग थी
हुआ जब शिकस्त का सामना तो ख़याल तेरी तरफ़ गया
लियाक़त अली आसिम
नज़्म
पंद्रह अगस्त
हज़ारों चीज़ें वो दुनिया को दे रहा है आज
नया ज़माना लिए इक उमंग आया है
जावेद अख़्तर
नज़्म
अपनी मल्का-ए-सुख़न से
रफ़्तार है कि चाँदनी रातों में मौज-ए-गंग
या भैरवीं की पिछले पहर क़ल्ब में उमंग