aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "ठोक"
मोहम्मद यूनुस ठोकर
संपादक
हाँ ठोक-बजा कर हम ने हुक्म लगाया हैसब माया है
वो बेहद मसरूर था, ख़ासकर उस वक़्त उसके दिल को बहुत ठंडक पहुंचती जब वो ख़याल करता कि गोरों... सफ़ेद चूहों (वो उनको उसी नाम से याद किया करता था) की थूथनियां नए क़ानून के आते ही बिलों में हमेशा के लिए ग़ायब हो जाएंगी। जब नत्थू गंजा, पगड़ी बग़ल...
जो दुकानें बच रहीं, उनमें बेस्वाओं के भाई-बंदों और साज़िंदों ने अपनी चारपाइयाँ डाल दीं। दिन भर ये लोग उन दुकानों में ताश, चौसर और शतरंज खेलते, बदन पर तेल मलवाते, सब्ज़ी घोटते, बटेरों की पालियाँ कराते, तीतरों से “सुब्हान तेरी क़ुदरत” की रट लगवाते और घड़ा बजा-बजा कर गाते।...
मैंने कहा, ‘‘एक तो मैं सिगरेट केस बेच डालूँगा।’’ मिर्ज़ा कहने लगे, ‘‘चलो दस आने तो ये हो गये। बाक़ी ढाई तीन हज़ार का इंतजाम भी इसी तरह हो जाये तो सब काम ठीक हो जाएगा।’’...
ज़िंदगी का बड़ा हिस्सा तो इसी घर में गुज़र गया, मगर कभी आराम न नसीब हुआ। मेरे शौहर दुनिया की निगाह में बड़े नेक, ख़ुशखल्क़, फ़य्याज़ और बेदार मग़ज़ होंगे, लेकिन जिस पर गुज़रती है वही जानता है, दुनिया को तो उन लोगों की तारीफ़ में मज़ा आता है जो...
पाब्लो नेरूदा ने ठीक ही कहा है, प्यार मुख़्तसर होता है, और भूलना बहुत तवील। उनके प्रसिद्ध कविता संग्रह से प्रेरित होकर, हम आपके लिए पेश करते हैं प्रेम, उसकी सुंदरता, उसके दुखों और निराशाओं के बारे में ये चुनिंदा गीत।
रंग ज़िन्दगी में हो या शायरी में, हुस्न में इज़ाफ़ा करते हैं बशर्ते कि इनका इस्तेमाल अच्छी तरह सोच समझ कर किया गया हो। बागों से लेकर ख़्वाहिशों तक रंगों की एक ऐसी दुनिया आबाद है जिनसे बाहर निकलने का जी नहीं करता। रंग शायरी भी ऐसी ही एक रंगोली बनती है जो आपकी आँखों को ठंढक और दिल को सुकून की दौलत से मालामाल करती हैः
उम्मीद में जीवन की आस हमारी इच्छा और आकांक्षा सब शामिल हैं । उम्मीद असल में जीवन को सहारा देने वाली और आगे बढ़ाने वाली अवस्था का नाम है । एक ऐसी अवस्था जो धुंद की तरह होती है उसमें कुछ साफ़ दिखाई नहीं देता लेकिन रौशनी का धोका रहता है । जिस तरह हाथ से सब कुछ निकल जाने के बाद भी एक उम्मीद हमें ज़िंदा रखती है ठीक उसी तरह प्रेमी के लिए भी उम्मीद किसी संपत्ति से कम नहीं । प्रेमी उम्मीद के सहारे ही ज़िंदा रहता है और तमाम दुखों के बावजूद उसे उम्मीद रहती है कि उसका प्रेम उसको मिल कर रहेगा । यहाँ उम्मीद से संबंधित चुनिंदा शायरी को पढ़ते हुए आप महसूस करेंगे कि ये मुश्किल वक़्तों में हौसला देने वाली शायरी भी है ।
ठोकٹھوک
hammer in
ठोका
जावेद अख़्तर चौधरी
अफ़साना
ठोकर
फ़िल्मी-नग़्मे
राम धन मिस्र ने चौधरी की तरफ़ हमदर्दाना अंदाज़ से देखकर पूछा, “अलगू तुम्हें कोई उज़्र हो तो बोलो।” अलगू ने क़िस्मत ठोंक ली, हसरत-नाक लहजे में बोले, “नहीं उज़्र कोई नहीं है।”...
मैं वहां बैठा था और हैरान हो रहा था कि मैं किस दुनिया में आ निकला हूँ। वहां हर चीज़ मस्नूई थी। वली साहिब, निज़ामी साहिब के हुक्म पर उनका स्लीपर उठा के लाए और झुक कर उनके क़दमों में रख दिया। उसमें बनावट थी... ख़ुदा की क़सम! यकसर बनावट...
एक बुजु़र्गवार अह्ल-ए-क़लम को तो मैं भी जानता हूँ जो बहुत देर तक इस्मत के प्रेम पुजारी रहे। ख़त-ओ-किताबत के ज़रिये से आपने इश्क़ फ़रमाना शुरू किया। इस्मत शह देती रही लेकिन आख़िर में ऐसा अड़ंगा दिया कि सुरय्या ही दिखा दी ग़रीब को। ये सच्ची कहानी मेरा ख़्याल है...
कहते हैं जब आतिश फ़िशाँ पहाड़ फटता है तो लावा वादी की गोद में उतर आता है। शायद यही वजह थी कि मेरे दधियाल वाले नन्हियाल वालों की तरफ़ ख़ुद ब-ख़ुद खिंच कर आ गए। ये मेल कब और किसने शुरू किया सब शजरे में लिखा है, मगर मुझे ठीक...
“यार मुलम्मा की न ठोक देना।” यानी बड़े भाई ज्ञान चंद की साहूकारी पर हमला करते हैं। और इधर नेशनल गार्ड दीवारों पर 'पाकिस्तान ज़िंदाबाद' लिख देते और सेवा सिंह का दल उसे बिगाड़ कर 'अखंड हिंदुस्तान' लिख देता। ये उस वक़्त का ज़िक्र है जब पाकिस्तान का लेन-देन एक...
तमसख़ुर से काम चलते न देखकर रूप कुमारी ने तहक़ीर शुरू की, "मैं तो उसको बहुत मुअज़्ज़ज़ पेशा नहीं समझती। सारे दिन झूट के तोमार बाँधो। ये ठीक बिद्या है।" राम दुलारी ज़ोर से हंसी, रूप कुमारी पर उसने कामिल फ़तह पाई थी, "इस तरह तो जितने वकील-बैरिस्टर हैं सभी...
चिल्ला ग़म ठोंक उछलता हो तब देख बहारें जाड़े कीतन ठोकर मार पछाड़ा हो और दिल से होती हो कुश्ती सी
हरनाम कौर ने पत्थर उठाया और तान कर उसको मारा। निहाल सिंह ने चोट की पर्वा न की और आगे बढ़ कर उसकी कलाई पकड़ ली लेकिन वो बिजली की सी तेज़ी से मच्छी की तरह तड़प कर अलग हो गई और ये जा वो जा। निहाल सिंह को जैसे...
“हुंह... चार बच्चे होने के बाद कमर...” “मेरे भी तो चार बच्चे हैं... मेरी कमर तो डंल्लो पल्लो का गुद्दा नहीं बनी”, उन्होंने अपने सुडौल जिस्म को ठोक बजाकर कहा और भाभी मुँह थोथाए भीगी मुर्ग़ी की तरह पैर मारती झर झुरियाँ लेती रेत में गहरे-गहरे गड्ढे बनाती मुन्ने को...
आज से ठीक चार बरस पहले जब वो अपने काँधों पर मुसीबतों का पहाड़ उठा कर अपनी रोटी आप कमाने के लिए मैदान में निकला तो कितने आदमियों ने उसका मज़हका उड़ाया था... कितने लोग उसकी हिम्मत पर ज़ेरे लब हंसते थे। मगर उसने इन बातों की कोई परवाह न...
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