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ग़ज़ल
इश्क़ गर रास न आया तो कहाँ हुस्न-ए-जमील
क्या मयस्सर हो हसीनों के नगर में रहना
जमील अहमद ख़ाँ जमील
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ग़ज़ल
ये पियाला है कि दिल है ये शराब है कि जाँ है
ये दरख़्त हैं कि साए किसी दस्त-ए-मेहरबाँ के
क़मर जमील
ग़ज़ल
मैं निसार-ए-दस्त-ए-नाज़ुक जो उठाए नाज़िशाना
कि सँवर गईं ये ज़ुल्फ़ें तो सँवर गया ज़माना
जमील मज़हरी
ग़ज़ल
दस्त-ए-जुनूँ में दामन-ए-गुल को लाने की तदबीर करें
नर्म हवा के झोंको आओ मौसम को ज़ंजीर करें
क़मर जमील
ग़ज़ल
ख़िदमत-ए-ख़ल्क़ का शायद ये है इनआ'म 'जमील'
हर कोई करने लगा शहर में इज़्ज़त मेरी