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ग़ज़ल
दिल का थोड़ा सा लहू इस में मिला कर हम ने
अश्क-ए-बे-दर्द को दुर्दाना बना कर छोड़ा
मंशाउर्रहमान ख़ाँ मंशा
ग़ज़ल
दिल का लहू ये आँसू बन के आँख से टप टप गिरने लगा
समझो उसे पानी का न क़तरा अश्क नहीं दुर्दाना है
हैदर हुसैन फ़िज़ा लखनवी
रेखाचित्र
जावेद सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
गोश रख मेरा सुख़न सुनता है हर अहल-ए-सुख़न
जब सूँ मैं बहर-ए-सुख़न की सीप का दुर्दाना हूँ
मिर्ज़ा दाऊद बेग
ग़ज़ल
दिन-रात जो आँखों से बहे पानी है पानी
जो दुख में किसी के बहे दुर्दाना वही है