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ग़ज़ल
मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए
पानी देने से निहाल-ए-क़द-ए-बाला बढ़ जाए
मिर्ज़ा रज़ा बर्क़
कहानी
शाम के साये गहरे हो रहे थे और गौतमा अभी तक नहीं आई थी। रेस्तोरान, जिसकी बालकोनी में बैठा म...
ए. हमीद
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तंज़-ओ-मज़ाह
“लो मिर्ज़ा तफ़ता एक बात लतीफ़े की सुनो। कल हरकारा आया तो तुम्हारे ख़त के साथ एक ख़त करांची ब...
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
तेरा नूर ज़ुहूर सलामत इक दिन तुझ पर माह-ए-तमाम
चाँद-नगर का रहने वाला चाँद-नगर लिख जाएगा
इब्न-ए-इंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
मोमिन की पहचान ये है कि वो एक सुराख़ से दुबारा नहीं डसा जा सकता। दूसरी बार डसे जाने के ख़्व...
इब्न-ए-इंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
हमने कहा, “ये जो तुम लोगों के लिपे पुते घरों की दीवारों को काली कूची फेर कर ख़राब करोगे, को...
इब्न-ए-इंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
हमने देखा है कि लोग अंधा-धुंद जिस दिन जो काम चाहें शुरू करदेते हैं। यह जंत्री सबके पास हो ...
इब्न-ए-इंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
ये बहुत मशहूर जानवर है। क़द में अक़ल से थोड़ा बड़ा होता है। चौपायों में ये वाहिद जानवर है कि म...
इब्न-ए-इंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
वाश एंड वियर क्वालिटी हमारे इस्लामी तारीख़ी नाविलों में भी दस्तयाब है। आर्डर के साथ इस अमर ...
इब्न-ए-इंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
इन उमूर में असल मुश्किल उस वक़्त पेश आती है जब कि कुत्ते को मालूम न हो कि उसे अख़बार में छप...
इब्न-ए-इंशा
तंज़-ओ-मज़ाह
लाहौर के एक अख़बार में एक वकील साहिब के मुताल्लिक़ ये ख़बर मुश्तहिर हुई है कि कोई ज़ालिम उनक...