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नज़्म
रम्ज़
मेरे कमरे को सजाने की तमन्ना है तुम्हें
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं
जौन एलिया
ग़ज़ल
आँखों में जो भर लोगे तो काँटों से चुभेंगे
ये ख़्वाब तो पलकों पे सजाने के लिए हैं
जाँ निसार अख़्तर
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नज़्म
मता-ए-ग़ैर
मेरे ख़्वाबों के झरोकों को सजाने वाली
तेरे ख़्वाबों में कहीं मेरा गुज़र है कि नहीं
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
रोज़ इन आँखों के सपने टूट जाते हैं तो क्या
रोज़ इन आँखों में फिर सपने सजाने चाहिएँ