aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "सिंदूर"
पुँछ गया सिंदूर तार तार हुई चुनरीऔर हम अंजान से
तब बाबू धनी राम एक लरज़ती हुई आवाज़ में कहते, “मदन की माँ होती बहू, तो ये सब तुम्हें न करने देती?” और इंदू एक दम अपने हाथ रोक लेती। छोटा पाशी भाबी से शर्माता था। इस ख़याल से कि दुल्हन की गोद झट से हरी हो, चमकी भाबी और...
अपनी बच्ची लेने आई हो, वो झुमके पहन कर जिन्होंने तुम्हारी ज़िंदगी के सबसे क़ीमती ज़ेवर को उतार कर गंदी मोरी में फेंक दिया है। मैं ये पूछता हूँ जब ये झुमके हिलते हैं तो तुम्हारे कानों में ये आवाज़ नहीं आती कि न तुम माँ रही हो न बीवी।...
ख़ैरियत इसमें थी कि वो बिल्कुल अकेली थी और अब उसे सिर्फ़ अपना धन्दा करना था। शादी के दो साल बाद उसके हाँ एक लड़की पैदा हुई लेकिन जब वो जवान हुई तो किसी बदमाश के साथ भाग गई और उसका आज तक किसी को पता न चला कि वो...
वो हैरान था कि वो ग़ाज़ा कहाँ गया, वो सिंदूर कहाँ उड़ गया। वो सर कहाँ ग़ायब हो गए जो उसने कभी यहां देखे और सुने थे। ज़्यादा अर्से की बात नहीं, अभी वो कल ही तो (दो बरस भी कोई अर्सा होता है) यहां आया था। कलकत्ते से जब...
सिंदूरسندور
red lead powder used by Hindu ladies as sign of marriage
हालात-व-वाक़ियात सुरूर-उस-सुदूर-ओ-नूर-उल-बदूर
पीर मोहम्मद अली हाशमी झुनझुनवी
जीवनी
सूहाग सिन्दूर
फ़िल्मी-नग़्मे
उंगलियां... उठने दो उंगलियां... मैं उन्हें काट डालूंगी... शोर मचेगा... मैं ये उंगलियां उठा कर अपने कानों में ठूंस लूंगी... मैं गूंगी हो जाऊंगी, बहरी हो जाऊंगी, अंधी हो जाऊंगी... मेरा गोश्त, मेरे इशारे समझ लिया करेगा... मैं उसे टटोल टटोल कर पहचान लिया करूंगी। मत छीनो... मत छीनो उसे......
बस उस की माँग में सिंदूर भर के लौट आएहमारे अगले जनम का चुनाव ऐसा था
एक दिन सै पहर को मैं और मदन साहब ज़ादा साहब की हवेली के बाहर सड़क पर गेंद से खेल रहे थे कि हमें एक अजीब सी वज़ा का बूढ़ा आदमी आता दिखाई दिया। उसने महाजनों के अंदाज़ में धोती बाँध रखी थी। माथे पर सिंदूर का टीका था। कानों...
चबूतरे पर एक मौलवी साहब भी मौजूद थे। उन्होंने क़ुरआन की वो आयत पढ़ी जो ऐसे मौक़ों पर पढ़ा करते हैं। बाबा जी ने आँखें बंद करलीं। ईजाब-ओ-क़बूल ख़त्म हुआ तो उन्होंने अपने मख़सूस अंदाज़ में दूल्हा-दुल्हन को आशीर्वाद दी और जब छोहारों की बारिश शुरू हुई तो उन्होंने बच्चों...
शाम जब रात की महफ़िल में क़दम रखती हैभरती है माँग में सिंदूर सुहागन की तरह
बेवा होजाने के बाद बूटी के मिज़ाज में कुछ तल्ख़ी आगई थी जब ख़ानादारी की परेशानियों से बहुत जी जलता तो अपने जन्नत नसीब को सलवातें सुनाती, "आप तो सिधार गए मेरे लिए ये सारा जंजाल छोड़ गए।" जब इतनी जल्दी जाना था तो शादी न जाने किस लिए की...
शागिर्द पेशे में नौकर मुस्कुरा रहे थे, राम अवतार के आने के बाद जो ड्रामा होने की उम्मीद थी सब उसी पर आस लगाए बैठे थे। हालाँकि राम अवतार लाम पर तोप बंदूक़ छोड़ने नहीं गया था। फिर भी सिपाहियों का मैला उठाते-उठाते उसमें कुछ सिपाहियाना आन बान और अकड़...
ऐसे ही एक मौक़े से चुन्नू ग़म भुलाने और जी बहलाने देवरानी के पास आ बैठा। ख़ातिर तवाज़ो हुई और बातों का सिलसिला छिड़ गया। दर्द-ए-दिल बयान हुए, तन्हाइयों का ज़िक्र चड़ग़ा और इस के दूर करने के ज़राए पर ग़ौर हुआ। बिल-आख़िर एक शब इम्तिहान की क़रार पाई। जब...
“बाई हम सादी बनाया। गंगा बाई को बोलाया, कल से वो काम पे आएगी उन्होंने कुछ सरपट मराठी में दूल्हा मियां को कुछ हिदायात दीं और ख़ुद अंदर आ गईं। “हमारा हिसाब कर देन बाई।” तीस रुपया महीना के हिसाब से पच्चीस दिन के पच्चीस होते थे। मैंने दस दस...
शब-ए-उ’रूसी में उसने अपनी दुल्हन से बड़ी प्यार और मुहब्बत भरी बातें कीं, ऐसी बातें जिनको सुनने के बाद सब परिन्दों ने मुत्तफ़िक़ा तोर पर ये फ़ैसला किया कि ये ऐसा कलाम है जो अगर फ़रिश्ते और हूरें भी अपने साज़ों पर गाएँ तो ख़ुद को आ’जिज़ समझें और बरब्तों...
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