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शेर
ख़ुदावंदा ये तेरे सादा-दिल बंदे किधर जाएँ
कि दरवेशी भी अय्यारी है सुल्तानी भी अय्यारी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
'मंज़र'-ए-सादा-दिल जिन्हें दोस्त समझ रहे थे तुम
आज वही वफ़ा-सरिश्त हो गए हम से दूर दूर
मंज़र अय्यूबी
ग़ज़ल
इक तिफ़्ल-ए-सादा-दिल के घरौंदे की तरह है
'सफ़दर' ये मुश्त-ए-ख़ाक कि दुनिया कहें जिसे
सय्यद सफ़दर हुसैन
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ग़ज़ल
तुझे नाज़-ए-ज़ब्त बजा सही मगर ऐ 'फ़रीदी'-ए-सादा-दिल
कोई चश्म-ए-शोला-मिज़ाज है तिरे दिल की बात लिए हुए
मुग़ीसुद्दीन फ़रीदी
ग़ज़ल
हक़ीक़त में बहुत कुछ खोने वाले हैं ये सादा-दिल
जो ये समझे हुए हैं उन को हासिल होने वाला है