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ग़ज़ल
इश्क़-ए-बे-परवा भी अब कुछ ना-शकेबा हो चला
शोख़ी-ए-हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ की बातें करो
फ़िराक़ गोरखपुरी
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ग़ज़ल
हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ का ये भी कमाल देख
पत्थर को छू के हाथ से लाला बना दिया
मोहम्मद इस्माईल शादाँ
ग़ज़ल
मुंतज़िर है इक जहाँ हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ का
अब उठा भी दीजिए पर्दा हरीम-ए-नाज़ का
मुस्लिम मलेगाँवी
ग़ज़ल
माह-ओ-अंजुम में भी उस का हुस्न जल्वा-रेज़ है
आफ़्ताब इक अक्स है हुस्न-ए-करिश्मा-साज़ का
नज़ीर रामपुरी
ग़ज़ल
मसीहुल्लाह ख़ाँ अता
ग़ज़ल
करिश्मा-साज़ी-ए-हुस्न-ए-तसव्वुरात न पूछ
वो आ गए मिरे दिल में ख़याल से पहले