aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "amr-e-ahsan"
हम और रस्म-ए-बंदगी आशुफ़्तगी उफ़्तादगीएहसान है क्या क्या तिरा ऐ हुस्न-ए-बे-परवा तिरा
दिल लगाओ न उस से ऐ 'अहसन'एक बे-फ़ैज़ ख़्वाब है दुनिया
निज़ाम हिन्द का बिगड़ा है जब से ऐ 'अहसन'तभी से सुर्ख़ समुंदर हमारी आँख में है
'अहसन' अच्छा है रहे माल-ए-अरब पेश-ए-अरबदे के दिल तुम न गिरफ़्तार-ए-बला हो जाना
'अमीर' ओ 'दाग़' तक ये इम्तियाज़ ओ फ़र्क़ था 'अहसन'कहाँ अब लखनऊ वाले कहाँ अब दिल्ली वाले हैं
आदमी या इन्सान सृष्टि की रचना का कारण ही नहीं बल्कि शायरी, संगीत और अन्य कलाओं का केंद्र बिंदु भी रहा है। उर्दू शायरी विशेष तौर पर ग़ज़ल के अशआर में इंसान अपनी सारी विशेषताओं, विषमताओं और विसंगतियों के साथ मौजूद है। हालांकि इंसान अपने आप में किसी पहेली से कम नहीं परन्तु इस पर जितने आसान और लोकप्रिय अशआर उर्दू में मौजूद हैं उनमें से केवल २० यहां आपके लिए प्रस्तुत हैं।
अम्र-ए-अहसानامر احسن
good work
Quran Majeed Aur Takhleeq-e-Insan
Islam Aur Adal-o-Ahsan
रईस अहमद जाफ़री
इस्लामियात
Sada-e-Ehsas
मोहम्मद अमीर आज़म क़ुरैशी
Nau-e-Insan Aur Tareekh-o-Tahzeeb-e-Alam
ए.ए.हाशमी
सांस्कृतिक इतिहास
Shumara Number-001
अबू मोहम्मद मुस्लेह
Jun 1930इर्तिक़ा-ए-इन्सान और क़ुरान
Itr-e-Arooz
सय्यद एहसान अली एहसान
Jalwa-e-Ahsan
सय्यद रफ़ीक़ मारहरवी
जीवनी
Fikr-o-Ehsas Ki Qandeelein
नज़ीफ़ुर्रहमान संभली
मज़ामीन / लेख
Iqbal ka Insan-e-kamil
ग़ुलाम उम्र
Abr Ahsani Aur Islah-e-Sukhan
नईमुद्दीन रिज़वी
Dawat-e-Deen Aur Uska Tareeqa-e-Kar
अमीन अहसन इस्लाही
Ibr AHasni Aur Islaah-e-Sukhan
अब्र अहसनी गनौरी
Irtiqa-e-Kainat Aur Insan-o-Deegar Mazameen
प्रो. बी. शैख़ अली
Tareekh-e-Jinnat Wa Insan Aur Unki Dawat
मोहम्मद हबीबुल्लाह क़ादरी
Mukaalmaat-e-Science
मोहम्मद नसीर अहमद उस्मानी
विज्ञान
'अहसन'-ए-रंजूर को दुनिया से क्या है वास्ताआप ने बीमार डाला आप ही अच्छा करें
ख़याल-ए-ज़ब्त-ए-उल्फ़त है तो 'अहसन' फिर ख़तर कैसान धड़के दिल भी सीने में वो इत्मीनान पैदा कर
ले गया ता कू-ए-यार 'अहसन' वहीमुद्दई कब दोस्तों से कम रहा
बात अम्न-ओ-अमाँ की करता थाउस ने बस्ती में तीर बेचा है
कुछ सख़्ती-ए-दुनिया का मुझे ग़म नहीं 'अहसन'खटका है मगर दिल को दम-ए-बाज़-पसीं का
बल खा रहे हैं सुब्हा-ओ-ज़ुन्नार इस लिए'एहसान' असीर-ए-गेसू-ए-ख़म-दार क्यों हुए
फ़रस-ए-उम्र ही अपना है बहुत सुस्त क़दमवर्ना 'एहसान' पे थोड़ी सी मसाफ़त क्या थी
क़ासिद नई अदा से अदा-ए-पयाम होमतलब ये है कि बात न हो और कलाम हो
'अहसन' की तबीअत से अभी तुम नहीं वाक़िफ़है दिल से दुआ-गो सहर ओ शाम तुम्हारा
मैं छुपाता हूँ ग़म-ए-इश्क़ तो बनता नहीं कामऔर कहता हूँ तो गोया मिरी रुस्वाई है
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