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ग़ज़ल
रख के जिस को शैख़ ने पी थी कभी नाम-ए-ख़ुदा
बा'इस-ए-बरकत वही दस्तार मय-ख़ाने में है
तल्हा रिज़वी बर्क़
ग़ज़ल
कुछ ऐसी बात हो जो मूजिब-ए-तस्कीन-ए-ख़ातिर हो
वो क्या इक़रार है जो बाइस-ए-आज़ार हो जाए
कँवल एम ए
ग़ज़ल
रौज़ा-ए-अक़्दस पे आकर क्यों न ठहरें क़ाफ़िले
बाइ'स-ए-तस्कीन-ए-दिल है आस्ताना आप का
शकील इबन-ए-शरफ़
ग़ज़ल
जहाँ हरकत नहीं होती वहाँ बरकत नहीं होती
'सुरूर' अब वादी-ए-गुल में क़याम अच्छा नहीं लगता
आल-ए-अहमद सुरूर
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नज़्म
जवाब-ए-शिकवा
हाथ बे-ज़ोर हैं इल्हाद से दिल ख़ूगर हैं
उम्मती बाइस-ए-रुस्वाई-ए-पैग़म्बर हैं
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
लिल्लाहिल-हम्द कि मुद्दत में तुम ऐ नूर-ए-निगाह
बाइस-ए-रौशनी-ए-दीदा-ए-ख़ूँ-बार हुए