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ग़ज़ल
सुरूर-ओ-कैफ़ के आलम में अपनी होश खो बैठे
'नज़र' की चोट खा कर महव-ए-जल्वा हो गए हम तुम
नज़र बर्नी
ग़ज़ल
नज़र लखनवी
ग़ज़ल
देख लें शायद 'नज़र' वो दीदा-ए-इंसाफ़ से
ले चलो टूटे हुए दिल का बना कर आईना
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
हमेशा से 'नज़र' हम महव-ए-याद-ए-रू-ए-रौशन हैं
चमक इस दर्द की रस्सी से हम दिल में नूर-ए-जाँ हो कर
मुंशी नौबत राय नज़र लखनवी
ग़ज़ल
एक मंज़र पर नज़र ठहरे तो ठहरे किस तरह
हम मिज़ाज-ए-गर्दिश-ए-अय्याम ले कर आए हैं
सय्यदा शान-ए-मेराज
नज़्म
त्याग
प्रेम लता की सुंदरता में जाग उठे अरमान
अपने पराए साजन बन कर आए नज़र इंसान