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ग़ज़ल
ख़िज़्र-सुल्ताँ को रखे ख़ालिक़-ए-अकबर सरसब्ज़
शाह के बाग़ में ये ताज़ा निहाल अच्छा है
मिर्ज़ा ग़ालिब
नज़्म
फ़रमान-ए-ख़ुदा
क्यूँ ख़ालिक़ ओ मख़्लूक़ में हाइल रहें पर्दे
पीरान-ए-कलीसा को कलीसा से उठा दो
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
आदमी-नामा
हत्ता कि अपने ज़ोहद-ओ-रियाज़त के ज़ोर से
ख़ालिक़ से जा मिला है सो है वो भी आदमी
नज़ीर अकबराबादी
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ग़ज़ल
मा'रिफ़त ख़ालिक़ की आलम में बहुत दुश्वार है
शहर-ए-तन में जब कि ख़ुद अपना पता मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
नज़्म
मुफ़्लिसी
दुनिया में ले के शाह से ऐ यार ता-फ़क़ीर
ख़ालिक़ न मुफ़्लिसी में किसी को करे असीर
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
हुजूम क्यूँ है ज़ियादा शराब-ख़ाने में
फ़क़त ये बात कि पीर-ए-मुग़ाँ है मर्द-ए-ख़लीक़
अल्लामा इक़बाल
नज़्म
एक रह-गुज़र पर
वो आँख जिस के बनाव प ख़ालिक़ इतराए
ज़बान-ए-शेर को तारीफ़ करते शर्म आए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
नज़्म
रोटियाँ
जिस जा पे हाँडी चूल्हा तवा और तनूर है
ख़ालिक़ की क़ुदरतों का उसी जा ज़ुहूर है
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
रामायण का एक सीन
तक़्सीर मेरी ख़ालिक़-ए-आलम बहल करे
आसान मुझ ग़रीब की मुश्किल अजल करे