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ग़ज़ल
याद-ए-माज़ी के दिए यूँ दिल-ए-वीराँ में जलें
जिस तरह शमएँ किसी गोर-ए-ग़रीबाँ में जलें
सय्यद मोहम्मद अहमद नक़वी
ग़ज़ल
है ख़ल्वत-ए-दिल-ए-वीराँ ही मंज़िल-ए-महबूब
ये ख़ल्वत-ए-दिल-ए-वीराँ नहीं तो कुछ भी नहीं
रविश सिद्दीक़ी
ग़ज़ल
किस का चमकता चेहरा लाएँ किस सूरज से माँगें धूप
घोर अँधेरा छा जाता है ख़ल्वत-ए-दिल में शाम हुए
इब्न-ए-इंशा
नज़्म
ऐ दिल-ए-अफ़सुर्दा
ऐ दिल-ए-अफ़सुर्दा पीने की बहारें आ गईं
काली काली बदलियाँ फिर आसमाँ पर छा गईं