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ग़ज़ल
शुक्र-ए-ख़ुदा कि बाज़ू-ए-क़ातिल में इन दिनों
पैदा है ज़ोर-ए-रुस्तम-ओ-सुहराब का ख़वास
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
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ग़ज़ल
शेरों के हिला डाले हैं दिल उस के जुनूँ ने
मजनूँ है कि है रुस्तम-ए-दस्तान-ए-बयाबाँ
आग़ा हज्जू शरफ़
ग़ज़ल
कलकत्ता में उल्फ़त की गवर्नर है सदा इश्क़
आमादा हो तू रुस्तम-ए-दस्तान समझ कर
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
जहाँ के रुस्तम-ओ-दारा के छक्के छूट जाएँगे
मुसलमाँ मुत्तहिद हो जाएँ तो क्या हो नहीं सकता
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
रुस्तम-ओ-दारा सिकंदर मिल गए सब ख़ाक में
बन के सरमद ज़िंदगी अपनी बसर कर रक़्स कर