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ग़ज़ल
ऐ अज़्म-ए-मुकम्मल जो सहारा तिरा पाऊँ
दुनिया के अंधेरे में नई शम्अ' जलाऊँ
हकीम मज़हर सुब्हान उस्मानी
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ग़ज़ल
नसीर कोटी
शेर
गर शैख़ अज़्म-ए-मंज़िल-ए-हक़ है तो आ इधर
है दिल की राह सीधी व का'बे की राह कज
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
नज़्म
उजाले की लकीर
इक नई सुब्ह-ए-दरख़्शाँ का रूपहला आँचल
अपने हमराह लिए अज़्म-ए-जवाँ की तनवीर
नूर-ए-शमा नूर
ग़ज़ल
बद्र-ए-आलम ख़लिश
नज़्म
सुब्ह-ए-शब-ए-इंतिज़ार
यही वो मंज़िल-ए-मक़्सूद है कि जिस के लिए
बड़े ही अज़्म से अपने सफ़र पे निकले थे