aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
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Pandit Daya Shankar Naseem Lakhnawi
1811 - 1845
Poet
Kumar Pashi
1935 - 1992
Madhavi Shankar
born.1981
Ashique Akbarabadi
1848 - 1918
Shankar Lal Shankar
Prem Shankar Goila Farhat
1926 - 1968
Uma Shankar Shadan Gwaliori
Author
Uma Shankar Ashk
Bhagat Musnhi Jawala Shankar
Mirza Shakoor Beg
born.1907
Meer Syed Meer Shakar
Shakur Javed
Munshi Shankar Dayaal Farhat
1843 - 1904
Thakazhi Sivasankara Pillai
Hajra Shakoor
ai Gaafil tujh se bhii cha.Dhtaa ik aur ba.Daa byopaarii haikyaa shakkar misrii qand garii kyaa saa.nbhar miiThaa khaarii hai
बुद्धू, "भय्या मैं गाय भैंस नहीं रखता। चमारों को जानते हूँ ये एक ही हत्यारे होते हैं। उसी हरिहर ने मेरी दो गायें मार डालीं। न जाने क्या खिला देता है। तब से कान पकड़े कि अब गाय भैंस न पालूँगा। लेकिन तुम्हारी एक ही बछिया है, उसका कोई क्या...
दिल में ये फ़ैसला करके वो ख़ामोशी से बुलावे का इंतिज़ार करने लगीं लेकिन घी की मर्ग़ूब ख़ुश्बू बहुत सब्र आज़मा साबित हो रही थी। उन्हें एक एक लम्हा एक एक घंटा मालूम होता था अब पत्तल बिछ गए होंगे। अब मेहमान आ गए होंगे। लोग हाथ पैर धो रहे...
अब भी बात साफ़ नहीं हुई तो हम एक और मुस्तनद नज़ीर पेश करते हैं। मौलाना अबुल कलाम आज़ाद को गुड़ से सख़्त चिड़ थी। उनका क़ौल है कि जिसने एक मर्तबा गुड़ चख लिया उसको तमाम उम्र दूसरी मिठास पसंद नहीं आ सकती चूँकि वो ख़ुद शक्कर की लतीफ़...
कॉलिज में मख़्लूत ता’लीम थी। लड़के ज़्यादा थे और लड़कियां कम। आपस में मिलते जुलते, लेकिन बड़े तकल्लुफ़ के साथ, शाहिदा अलग अलग रहती। इसलिए कि उसको अपने हुस्न पर बड़ा नाज़ था। वो अपनी हम जमाअ’त लड़कियों से भी बहुत कम गुफ़्तगू करती थी। क्लास में आती तो एक...
शक्करشکر
sugar
Gulzar-e-Naseem
Masnavi
Masnavi Gulzar-e-Naseem
Aasan Ilm-e-Mashiyat
Pandit Daya Shankar Doobe
Economics
Shlok Shaikh Baba Fareed Ganj Shakar
Shaikh Fareed
Exegesis
Qadeem Hindustan Ki Tareekh
Rama Shankar Tripathi
Indian History
Khawateen Ki Azadi Ahd-e-Risalat Mein
Abdul Haleem Mohammad Abu Shaqqa
Islamic History
Ahwal-e-Urs-e-Muqaddas Baba Fareed Ganj Shakar
Syed Imam Ali Shah
Chishtiya
Shakar Pare
Mubashshir Ali Zaidi
Short-story
Aqeedat Ke Phool
Shankar Kaimoori
Naat
Hazrat Baba Fareed Ganj Shakar Shakhsiyat Aur Fun
Kashmiri Lal Zakir
अक़्द गाह उन्होंने इस तरह कहा कि जैसे अपने फैज़ साहब क़त्ल गाह का ज़िक्र करते हैं और सच तो यह है कि क़िबला की दहशत दिल में ऐसी बैठ गई थी कि मुझे तो उ'रूसी छपर खट भी फांसी घाट लग रहा था। उन्होंने यह शर्त भी लगाई कि...
शादी से पहले मौलवी अबुल के बड़े ठाठ थे। खद्दर या लट्ठे की तहबंद की जगह गुलाबी रंग की सब्ज़ धारियों वाली रेशमी ख़ोशाबी लुंगी, दो घोड़ा बोस्की की क़मीज़, जिसकी आस्तीनों की चुन्नटों का शुमार सैंकड़ों में पहुँचता था। ऊदे रंग की मख़्मल की वास्कट जिसकी एक जेब में...
jo misrii aur ke mu.nh me.n de phir vo bhii shakkar khaataa haijo aur ta.ii.n ab Takkar de phir vo bhii Takkar khaataa hai
मिर्चें खाने का एक आसानी से समझ आ जाने वाला फ़ायदा ये है कि उनसे हमारे मशरिक़ी खानों का असल रंग और मज़ा दब जाता है। ख़मीरा गाव ज़बान इसलिए खाते हैं कि बग़ैर राशन कार्ड के शक्कर हासिल करने का यही एक जाइज़ तरीक़ा है। जोशांदा इसलिए गवारा है...
एक छोटी उम्र का लड़का झोली में पापडों का अंबार डाले भागा जा रहा था... ठोकर लगी तो पापडों की एक गड्डी उसकी झोली में से गिर पड़ी। लड़का उसे उठाने के लिए झुका तो एक आदमी जो सर पर सिलाई की मशीन उठाए हुए था उससे कहा, “रहने दे...
safii' ko muskuraa kar dekh lo Gusse se kyaa haasiluse tum zahr kyo.n dete ho jo martaa hai shakkar se
“जी हाँ।” “वो क्या दिन थे जब हमारी शादी हुई थी। तुम्हें मेरी हर बात का कितना ख़याल रहता था। हम बाहम किस क़दर शेर-ओ-शक्कर थे... मगर अब तुम कभी सोने का बहाना कर देती हो। कभी थकावट का उज़्र पेश कर देती और कभी दोनों कान बंद कर लेती...
“हाँ खोया... मैदा... शक्कर और घी...”, खोया... मैदा... शुक्र और घी। मैंने अपने होंट दाँतों में दबा कर सोचा कि मैं भी शाइ’री करूँगा। उस दिन शाम होते ही मैं बड़ी बेताबी से बाहर निकला और उसी जगह खड़े हो कर इधर-उधर देखने लगा। एक मोटी सी उधेड़ उ’म्र की...
शहबाज़ ख़ान ये सुन कर ख़ुश होगया। हमज़ा ख़ान ने शुरू शुरू में कुछ इतना अच्छा काम न किया लेकिन थोड़े अर्से में वो सब कुछ सीख गया। चाय कैसे बनाई जाती है। शक्कर के साथ गुड़ कितना डाला जाता है। कोयले वालियों से कोयले कैसे हासिल किए जाते हैं...
साज़ मिलाए गए, या’नी हारमोनियम को तालियों से और तालियों को मटके से मिलाया गया। और जब कलाम-ए-शायर को इन तीनों के ताबे' करलिया गया तो क़व्वाली का रंग जमा। हमारा ख़याल है कि इस पाए के मुग़न्नियों को तो मुग़लों के ज़माने में पैदा होना चाहिए था, ताकि कोई...
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