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नज़्म
वालिदा मरहूमा की याद में
ज़लज़ले हैं बिजलियाँ हैं क़हत हैं आलाम हैं
कैसी कैसी दुख़्तरान-ए-मादर-ए-अय्याम हैं
अल्लामा इक़बाल
हास्य शायरी
खुल के बोली वो मोहब्बत की पिटारी हाए हाए
कैसी कैसी दुख़्तरान-ए-मादर-ए-अय्याम हैं
मोहम्मद ताहा खान
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नज़्म
बदनाम हो रहा हूँ
खेतों से घूरती हैं यूँ दुख़्तरान-ए-सहरा
बिजली की रौशनी को जैसे मियान-ए-सहरा
अख़्तर शीरानी
नज़्म
मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
मुस्कुराते हुए किरदार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
मादर-ए-हिन्द के फ़नकार थे मिर्ज़ा 'ग़ालिब'
कैफ़ अहमद सिद्दीकी
नज़्म
रामायण का एक सीन
फिर अर्ज़ की ये मादर-ए-नाशाद के हुज़ूर
मायूस क्यूँ हैं आप अलम का है क्यूँ वफ़ूर
चकबस्त ब्रिज नारायण
शेर
गर्दिश-ए-अय्याम से चलती है नब्ज़-ए-काएनात
वक़्त का पहिया रुका तो ज़िंदगी रुक जाएगी
लतीफ़ शाह शाहिद
ग़ज़ल
शाम-ए-फ़ुर्क़त इंतिहा-ए-गर्दिश-ए-अय्याम है
जितनी सुब्हें हो चुकी हैं आज सब की शाम है
सीमाब अकबराबादी
नज़्म
उर्दू ज़बान
आज़ाद हिन्द में न मिला इस को कुछ मक़ाम
ये मादर-ए-वतन के शहीदों की जान है