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शेर
वो जिन के ज़िक्र से रगों में दौड़ती थीं बिजलियाँ
उन्हीं का हाथ हम ने छू के देखा कितना सर्द है
बशीर बद्र
शेर
नज़र उन की रही कॉलेज के बस इल्मी फ़वाएद पर
गिरा के चुपके चुपके बिजलियाँ दीनी अक़ाएद पर
अकबर इलाहाबादी
शेर
हिलाल फ़रीद
शेर
ज़रा पर्दा हटा दो सामने से बिजलियाँ चमकें
मिरा दिल जल्वा-गाह-ए-तूर बन जाए तो अच्छा हो
अली ज़हीर रिज़वी लखनवी
शेर
नज़र आती हैं सू-ए-आसमाँ कभी बिजलियाँ कभी आँधियाँ
कहीं जल न जाए ये आशियाँ कहीं उड़ न जाएँ ये चार पर
मुनव्वर बदायुनी
शेर
चुराने को चुरा लाया मैं जल्वे रू-ए-रौशन से
मगर अब बिजलियाँ लिपटी हुई हैं दिल के दामन से
इज्तिबा रिज़वी
शेर
हमारे ख़ौफ़ की ख़ल्लाक़ियाँ ख़ुदा की पनाह
वो बिजलियाँ हैं नज़र में जो आसमाँ में नहीं