aaj ik aur baras biit gayā us ke baġhair
jis ke hote hue hote the zamāne mere
परिणाम "एहसास-ए-बरतरी"
अलम-बरदार तन्हाई था अपना 'फ़रहत-एहसास'हुजूम-ए-शहर के हाथों जो मारा जा रहा है
मुझ को एहसास-ए-रंग-ओ-बू न हुआयूँ भी अक्सर बहार आई है
आँखों में जल रहे थे दिए ए'तिबार केएहसास-ए-ज़ुल्मत-ए-शब-ए-हिज्राँ नहीं रहा
ये ख़ुद-फ़रेबी-ए-एहसास-ए-आरज़ू तो नहींतिरी तलाश कहीं अपनी जुस्तुजू तो नहीं
अब तो एहसास-ए-तमन्ना भी नहींक़ाफ़िला दिल का लुटा हो जैसे
इसी लिए हमें एहसास-ए-जुर्म है शायदअभी हमारी मोहब्बत नई नई है ना
और एहसास-ए-जिहालत बढ़ गयाकिस क़दर पढ़ लिख के जाहिल हो गए
एहसास-ए-जुर्म जान का दुश्मन है 'जाफ़री'है जिस्म तार तार सज़ा के बग़ैर भी
एहसास-ए-तीरगी था उसे रौशनी के बा'दइस ख़ौफ़ से चराग़ की लौ काँपती रही
तुझ आँख से झलकता था एहसास-ए-ज़िंदगीमैं देखता रहा हूँ तुझे ख़ाक-दान से
बे-ख़ुदी में शान-ए-ख़ुद्दारी भी हैख़्वाब में एहसास-ए-बेदारी भी है
नींद टूटी है तो एहसास-ए-ज़ियाँ भी जागाधूप दीवार से आँगन में उतर आई है
कुछ तो एहसास-ए-मोहब्बत से हुईं नम आँखेंकुछ तिरी याद के बादल भी भिगो जाते हैं
खींच लाया तुझे एहसास-ए-मोहब्बत मुझ तकहम-सफ़र होने का तेरा भी इरादा कब था
वो आदमी है तो एहसास-ए-जुर्म काफ़ी हैवो संग है तो उसे संगसार क्या करना
ज़िंदगानी में सभी रंग थे महरूमी केतुझ को देखा तो मैं एहसास-ए-ज़ियाँ से निकला
बाहर जो नहीं था तो कोई बात नहीं थीएहसास-ए-नदामत मगर अंदर भी नहीं था
गो मुझे एहसास-ए-तन्हाई रहा शिद्दत के साथकाट दी आधी सदी एक अजनबी औरत के साथ
किस एहसास-ए-जुर्म की सब करते हैं तवक़्क़ोइक किरदार किया था जिस में क़ातिल था मैं
'रियाज़' एहसास-ए-ख़ुद्दारी पे कितनी चोट लगती हैकिसी के पास जब जाता है कोई मुद्दआ' ले कर
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