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शेर
रोता हूँ मैं तसव्वुर-ए-ज़ुल्फ़-ए-सियाह में
पानी बरस रहा है जमे हैं घटा के रंग
मुंशी खैराती लाल शगुफ़्ता
शेर
वो ख़त वो चेहरा वो ज़ुल्फ़-ए-सियाह तो देखो
कि शाम सुब्ह के बाद आए सुब्ह शाम के बाद
आसी ग़ाज़ीपुरी
शेर
हो गया मौक़ूफ़ ये 'सौदा' का बिल्कुल एहतिराक़
लाला बे-दाग़-ए-सियह पाने लगा नश्व-ओ-नुमा