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शेर
इस से अच्छे दश्त-ए-सहरा इस से अच्छे गर्द-बाद
आलम-ए-वहशत में मेरा घर कोई घर रह गया
रियाज़ ख़ैराबादी
शेर
बरसों ब'अद हमें देखा तो पहरों उस ने बात न की
कुछ तो गर्द-ए-सफ़र से भाँपा कुछ आँखों से जान लिया
ऐतबार साजिद
शेर
हाथ टूटें मैं ने गर छेड़ी हों ज़ुल्फ़ें आप की
आप के सर की क़सम बाद-ए-सबा थी मैं न था
मोमिन ख़ाँ मोमिन
शेर
तू इधर उधर की न बात कर ये बता कि क़ाफ़िले क्यूँ लुटे
तिरी रहबरी का सवाल है हमें राहज़न से ग़रज़ नहीं