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शेर
तलाश-ए-यार में गर्दिश को मैं तौफ़-ए-हरम समझूँ
करूँ चारों-तरफ़ सज्दे कि वो हर-सू निकलते हैं
इमदाद अली बहर
शेर
जिस्म-ए-ख़ाकी को बनाया लाग़री ने ऐन-रूह
ग़र्क़-ए-आब-ए-बहर कट कट कर ये साहिल हो गया
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
तलाश-ए-सूरत-ए-तस्कीं न कर औहाम-हस्ती में
दिल-ए-महज़ूँ बहल सकता नहीं इस नक़्श-ए-बातिल से
मुमताज़ अहमद ख़ाँ ख़ुशतर खांडवी
शेर
है तलाश-ए-दो-जहाँ लेकिन ख़बर अपनी किसे
जीते-जी तक जुस्तुजू सब कुछ है और फिर कुछ नहीं