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शेर
जमील मज़हरी
शेर
हम को ख़बर है शहर में उस के संग-ए-मलामत मिलते हैं
फिर भी उस के शहर में जाना कितना अच्छा लगता है
ताबिश मेहदी
शेर
तवाफ़-ए-काबा-ए-दिल कर नियाज़-ओ-ख़ाकसारी सीं
वज़ू दरकार नईं कुछ इस इबादत में तयम्मुम कर
आबरू शाह मुबारक
शेर
ख़ाक आब-ए-गिर्या से आतिश बुझे नाचार हम
जानिब-ए-कू-ए-बुताँ जूँ बाद-ए-सरसर जाएँगे
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
ज़रा वो ख़ाक में मिलने न दे ख़ून-ए-शहीदाँ को
ख़ुदा तौफ़ीक़ दे इतनी ज़मीन-ए-कू-ए-जानाँ को