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शेर
किया ख़ाक आतिश-ए-इश्क़ ने दिल-ए-बे-नवा-ए-'सिराज' कूँ
न ख़तर रहा न हज़र रहा मगर एक बे-ख़तरी रही
सिराज औरंगाबादी
शेर
ऐ दिल-ए-बे-जुरअत इतनी भी न कर बे-जुरअती
जुज़ सबा उस गुल का इस दम पासबाँ कोई नहीं