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शेर
मतीन नियाज़ी
शेर
अब तो जो शय है मिरी नज़रों में है ना-पाएदार
याद आया मैं कि ग़म को जावेदाँ समझा था मैं
हबीब अहमद सिद्दीक़ी
शेर
ज़हर बन कर वो 'मुसव्विर' मिरी नस नस में रहा
मैं ने समझा था उसे भूल चुका हूँ मैं तो