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शेर
रह-ओ-रस्म-ए-मोहब्बत इन हसीनों से मैं क्या रक्खूँ
जहाँ तक देखता हूँ नफ़अ उन का है ज़रर अपना
अकबर इलाहाबादी
शेर
ये हमारी आप की दूरियाँ ये कभी कभी की हुज़ूरियाँ
हैं अजब तरह की लगावटें रह-ओ-रस्म-ए-दूर-ओ-दराज़ में
इज्तिबा रिज़वी
शेर
गर शैख़ अज़्म-ए-मंज़िल-ए-हक़ है तो आ इधर
है दिल की राह सीधी व का'बे की राह कज
ग़ुलाम यहया हुज़ूर अज़ीमाबादी
शेर
वसवसे दिल में न रख ख़ौफ़-ए-रसन ले के न चल
अज़्म-ए-मंज़िल है तो हम-राह थकन ले के न चल
अबरार किरतपुरी
शेर
रहरव-ए-राह-ए-मोहब्बत रह न जाना राह में
लज़्ज़त-ए-सहरा-नवर्दी दूरी-ए-मंज़िल में है
बिस्मिल अज़ीमाबादी
शेर
मुज़्तर ख़ैराबादी
शेर
मंसूर ने न ज़ुल्फ़ के कूचे की राह ली
नाहक़ फँसा वो क़िस्सा-ए-दार-ओ-रसन के बीच