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शेर
हुस्न की शर्त-ए-वफ़ा जो ठहरी तेशा ओ संग-ए-गिराँ की बात
हम हों या फ़रहाद हो आख़िर आशिक़ तो मज़दूर रहा
अज़ीज़ हामिद मदनी
शेर
करते हैं मस्जिदों में शिकवा-ए-मस्ताँ ज़ाहिद
या'नी आँखों का भवों से ये गिला करते हैं
मुनीर शिकोहाबादी
शेर
नक़्काश-ए-अज़ल ने तो सर-ए-काग़ज़-ए-बाद आह
क्या ख़ाक लिखा उम्र की ता'मीर का नक़्शा