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शेर
कौन है जो इतने सन्नाटे में है महव-ए-सफ़र
दश्त-ए-शब में ये ग़ुबार-ए-माह-ओ-अंजुम किस लिए
ज़िया फ़ारूक़ी
शेर
अश्क-ए-ग़म उक़्दा-कुशा-ए-ख़लिश-ए-जाँ निकला
जिस को दुश्वार मैं समझा था वो आसाँ निकला
हादी मछलीशहरी
शेर
ग़ुबार-ए-दिल को मैं मिज़्गान-ए-यार से झाड़ा
कि सच है होती है जारोब आस्तीं घर की