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शेर
मौसम-ए-होली है दिन आए हैं रंग और राग के
हम से तुम कुछ माँगने आओ बहाने फाग के
मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी
शेर
कोई ऐसा अहल-ए-दिल हो कि फ़साना-ए-मोहब्बत
मैं उसे सुना के रोऊँ वो मुझे सुना के रोए
सैफ़ुद्दीन सैफ़
शेर
हाल-ए-दिल सुन के वो आज़ुर्दा हैं शायद उन को
इस हिकायत पे शिकायत का गुमाँ गुज़रा है
अब्दुल मजीद सालिक
शेर
हम उन से हाल-ए-दिल रो रो के बेताबाना कहते हैं
उन्हें देखो कि हँस हँस के मुझे दीवाना कहते हैं
अरमान अज़ीमाबादी
शेर
हाल-ए-दिल सुनते नहीं ये कह के ख़ुश कर देते हैं
फिर कभी फ़ुर्सत में सुन लेंगे कहानी आप की