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शेर
मैं जाँ-ब-लब हूँ ऐ तक़दीर तेरे हाथों से
कि तेरे आगे मिरी कुछ न चल सकी तदबीर
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
शेर
कोई भी शख़्स दुनिया में तुम्हें छोटा नज़र न आए
तुम अपने सोचने का दायरा इतना बड़ा कर लो
संदीप गुप्ते
शेर
हर शय में हर बशर में नज़र आ रहा है तू
सज्दे में अपने सर को झुकाऊँ कहाँ कहाँ