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शेर
'नाज़िम' ये इंतिज़ाम रिआ'यत है नाम की
मैं मुब्तला नहीं हवस-ए-मुल्क-ओ-माल का
सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम
शेर
आश्ना कोई नज़र आता नहीं याँ ऐ 'हवस'
किस को मैं अपना अनीस-ए-कुंज-ए-तन्हाई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
हवस हम पार होएँ क्यूँकि दरिया-ए-मोहब्बत से
क़ज़ा ने बादबान-ए-कशती-ए-तदबीर को तोड़ा
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
सहरा में 'हवस' ख़ार-ए-मुग़ीलाँ की मदद से
बारे मिरा ख़ूँ हर ख़स-ओ-ख़ाशाक को पहुँचा
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
शेर
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दो फ़रंगी सैर को निकले हैं मुल्क-ए-शाम से
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
तुम आओ मर्ग-ए-शादी है न आओ मर्ग-ए-नाकामी
नज़र में अब रह-ए-मुल्क-ए-अदम यूँ भी है और यूँ भी
साइल देहलवी
शेर
साक़िया हिज्र में कब है हवस-ए-गुफ़्त-ओ-शुनीद
साग़र-ए-गोश से मीना-ए-ज़बाँ दूर रहे