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शेर
ऐ हसरत-ए-दिल गो वस्ल हुआ पर शौक़ हमारा कम न हुआ
जिस से कि ख़लिश कुछ और बढ़े वो ज़ख़्म हुआ मरहम न हुआ
सुहैल अज़ीमाबादी
शेर
अश्क-ए-ग़म उक़्दा-कुशा-ए-ख़लिश-ए-जाँ निकला
जिस को दुश्वार मैं समझा था वो आसाँ निकला