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शेर
लाग़र ऐसा वहशत-ए-इश्क़-ए-लब-ए-शीरीं में हूँ
च्यूंटियाँ ले जाती हैं दाना मिरी ज़ंजीर का
असद अली ख़ान क़लक़
शेर
मुँह ज़र्द ओ आह-ए-सर्द ओ लब-ए-ख़ुश्क ओ चश्म-ए-तर
सच्ची जो दिल-लगी है तो क्या क्या गवाह है
नज़ीर अकबराबादी
शेर
या गुफ़्तुगू हो उन लब-ओ-रुख़्सार-ओ-ज़ुल्फ़ की
या उन ख़मोश नज़रों के लुत्फ़-ए-सुख़न की बात
जयकृष्ण चौधरी हबीब
शेर
ब-वक़्त-ए-बोसा-ए-लब काश ये दिल कामराँ होता
ज़बाँ उस बद-ज़बाँ की मुँह में और मैं ज़बाँ होता
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
शेर
कुछ तो है वैसे ही रंगीं लब ओ रुख़्सार की बात
और कुछ ख़ून-ए-जिगर हम भी मिला देते हैं
आल-ए-अहमद सुरूर
शेर
बाल रुख़्सारों से जब उस ने हटाए तो खुला
दो फ़रंगी सैर को निकले हैं मुल्क-ए-शाम से
परवीन उम्म-ए-मुश्ताक़
शेर
हंगाम-ए-क़नाअ'त दिल-ए-मुर्दा हुआ ज़िंदा
मज़मून-ए-क़ुम ए'जाज़-ए-लब-ए-नान-ए-जवीं था