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ग़ज़ल
मुंतज़िर हैं दम-ए-रुख़्सत कि ये मर जाए तो जाएँ
फिर ये एहसान कि हम छोड़ के जाते भी नहीं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
सब दोस्त मिरे मुंतज़िर-ए-पर्दा-ए-शब थे
दिन में तो सफ़र करने में दिक़्क़त भी बहुत थी
परवीन शाकिर
ग़ज़ल
अभी बादबान को तह रखो अभी मुज़्तरिब है रुख़-ए-हवा
किसी रास्ते में है मुंतज़िर वो सुकूँ जो आ के चला गया
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
ग़ज़ल
हैं किसी के मुंतज़िर हम मगर ऐ उमीद-ए-मुबहम
कहीं वक़्त रह न जाए यूँही करवटें बदल कर
शकील बदायूनी
ग़ज़ल
कोई छींटा पड़े तो 'दाग़' कलकत्ते चले जाएँ
अज़ीमाबाद में हम मुंतज़िर सावन के बैठे हैं
दाग़ देहलवी
ग़ज़ल
रग-ए-ताक मुंतज़िर है तिरी बारिश-ए-करम की
कि अजम के मय-कदों में न रही मय-ए-मुग़ाना