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ग़ज़ल
कोई हमें भी ये समझा दो उन पर दिल क्यूँ रीझ गया
देखी चितवन बाँकी छब वाले बहतेरे फिरते हैं
सय्यद आबिद अली आबिद
ग़ज़ल
चिड़ मुझ को तुझे रीझ के तकरार बहुत की
ख़ुश रह कि ख़ुशामद तिरी ऐ यार बहुत की
अब्दुल रहमान एहसान देहलवी
ग़ज़ल
सुख़न हैं हल्क़ा-ए-मिसरा में ज्यूँ दुर-ए-शहवार
है ये रिजा कि क़दर-दाँ के कान से गुज़रे
लुत्फ़ुन्निसा इम्तियाज़
ग़ज़ल
कोई हमें भी तो समझा दो उन पर दिल क्यों रीझ गया
तीखी चितवन बाँकी छब वाले बहुतेरे फिरते हैं