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ग़ज़ल
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
इब्न-ए-इंशा
ग़ज़ल
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
जान सी शय बिक जाती है एक नज़र के बदले में
आगे मर्ज़ी गाहक की इन दामों तो सस्ती है
फ़ानी बदायुनी
ग़ज़ल
आले रज़ा रज़ा
ग़ज़ल
तुम्हारी ज़ुल्फ़ों से ख़ुशबू की भीक लेने को
झुकी झुकी सी घटाएँ बुला रही हैं तुम्हें
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
शर्म आती है कि उस शहर में हम हैं कि जहाँ
न मिले भीक तो लाखों का गुज़ारा ही न हो