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ग़ज़ल
ज़ुल्फ़ों की तो फ़ितरत ही है लेकिन मिरे प्यारे
ज़ुल्फ़ों से ज़ियादा तुम्हीं बल खाए चलो हो
कलीम आजिज़
ग़ज़ल
कतराते हैं बल खाते हैं घबराते हैं क्यूँ लोग
सर्दी है तो पानी में उतर क्यूँ नहीं जाते
महबूब ख़िज़ां
ग़ज़ल
उस की याद की बाद-ए-सबा में और तो क्या होता होगा
यूँही मेरे बाल हैं बिखरे और बिखर जाते होंगे
जौन एलिया
ग़ज़ल
है किस के बल पे हज़रत-ए-'जौहर' ये रू-कशी
ढूँडेंगे आप किस का सहारा ख़ुदा के ब'अद
मौलाना मोहम्मद अली जौहर
ग़ज़ल
औरों के बल पे बल न कर इतना न चल निकल
बल है तो बल के बल पे तू कुछ अपने बल के चल
बहादुर शाह ज़फ़र
ग़ज़ल
बल-बे-गुदाज़-ए-इश्क़ कि ख़ूँ हो के दिल के साथ
सीने से तेरे तीर का पैकान बह गया