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ग़ज़ल
लहू की बूँद भी ऐ तीर-ए-यार दिल में नहीं
ये फ़िक्र है कि तवाज़ो करूँ मैं क्या तेरी
जलील मानिकपूरी
ग़ज़ल
हम किया करते हैं अश्कों से तवाज़ो' क्या क्या
जब ख़यालों में वो आ जाते हैं मेहमाँ की तरह
क़तील शिफ़ाई
ग़ज़ल
आप के ग़म ने तन-ए-ज़ार में छोड़ा क्या है
मलक-उल-मौत का ये मुझ से तक़ाज़ा क्या है
मोहम्मद यूसुफ़ रासिख़
ग़ज़ल
तवाज़ो करते करते एक दिन वो ख़ुद-कुशी कर ले
किसी के घर पे इतने दिन न फ़रमाओ क़ियाम अपना
हमीद दिलकश खंड्वी
ग़ज़ल
तवाज़ो आप की हम क्या करें भला साहिब
ब-क़ौल शख़्से इस अपने जिगर में आह नहीं