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ग़ज़ल
दूल्हा ख़ुद भी लूट रहा है मिस्री बादाम और खजूर
ससुरे को भी मारे धक्का ये मालूम न वो मालूम
पागल आदिलाबादी
ग़ज़ल
मेरे लहजे ने मिरे क़द को किया इतना बुलंद
अब तो हर दोस्त की ख़्वाहिश है कि धक्का दे दे
संजय मिश्रा शौक़
ग़ज़ल
न धक्का है न मुक्का है लड़ाई देखते जाओ
ज़बानी हो रही है हाथा-पाई देखते जाओ
किशन लाल ख़न्दां देहलवी
ग़ज़ल
अपनी मर्ज़ी से मत जाना तू खाई के किनारे तक
वक़्त के हाथ नहीं काँपेंगे तुझ को धक्का देने में
नवीन जोशी
ग़ज़ल
हुआ जब ग़म से यूँ बे-हिस तो ग़म क्या सर के कटने का
न होता गर जुदा तन से तो ज़ानू पर धरा होता
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
सूरज में लगे धब्बा फ़ितरत के करिश्मे हैं
बुत हम को कहें काफ़िर अल्लाह की मर्ज़ी है
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
अच्छी सूरत वाले सारे पत्थर-दिल हों मुमकिन है
हम तो उस दिन राय देंगे जिस दिन धोका खाएँगे
निदा फ़ाज़ली
ग़ज़ल
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी