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ग़ज़ल
गरचे है मेरी जुस्तुजू दैर ओ हरम की नक़्शा-बंद
मेरी फ़ुग़ाँ से रुस्तख़ेज़ काबा ओ सोमनात में
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
शब ख़ुमार-ए-शौक़-ए-साक़ी रुस्तख़ेज़-अंदाज़ा था
ता-मुहीत-ए-बादा सूरत ख़ाना-ए-ख़म्याज़ा था
मिर्ज़ा ग़ालिब
ग़ज़ल
है रुस्तख़ेज़-ए-इश्क़ ख़ुद सुराग़-ए-मंज़िल-ए-अबद
ख़िरद की हीला-जूई में ख़तर ख़तर अयाँ अयाँ
तल्हा रिज़वी बर्क़
ग़ज़ल
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ी
दिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ऐ हल्क़ा-ए-दरवेशाँ वो मर्द-ए-ख़ुदा कैसा
हो जिस के गरेबाँ में हंगामा-ए-रुस्ता-ख़ेज़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
कोई रुस्तमी से कह दे कोई मरहबी से कह दे
मैं ग़ुलाम-ए-मुस्तफ़ा हूँ मिरा शौक़ जाँ-निसारी
सरफ़राज़ बज़्मी
ग़ज़ल
दाद जाँकाही की किस से पाएँ अब अहल-ए-हुनर
ख़ूँ-चकीदा ख़ामा रिसती उँगलियाँ देखेगा कौन
पीरज़ादा क़ासीम
ग़ज़ल
फ़र्ज़ की मंज़िल ने मेरी गुमरही भी छीन ली
वर्ना 'अश्क' इस रस्ती-बस्ती राह में क्या क्या न था
बिमल कृष्ण अश्क
ग़ज़ल
है दिल में जोश-ए-हसरत रुकते नहीं हैं आँसू
रिसती हुई सुराही टूटा हुआ सुबू हूँ