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ग़ज़ल
गरचे है दिल-कुशा बहुत हुस्न-ए-फ़रंग की बहार
ताएरक-ए-बुलंद-बाम दाना-ओ-दाम से गुज़र
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
ख़ीरा न कर सका मुझे जल्वा-ए-दानिश-ए-फ़रंग
सुर्मा है मेरी आँख का ख़ाक-ए-मदीना-ओ-नजफ़
अल्लामा इक़बाल
ग़ज़ल
किस ने कहा कि टूट गया ख़ंजर-ए-फ़रंग
सीने पे ज़ख़्म-ए-नौ भी है दाग़-ए-कुहन के साथ