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ग़ज़ल
कहीं तार-ए-दामन-ए-गुल मिले तो ये मान लें कि चमन खिले
कि निशान फ़स्ल-ए-बहार का सर-ए-शाख़-सार कोई तो हो
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
ग़म-ए-दुनिया भी ग़म-ए-यार में शामिल कर लो
नश्शा बढ़ता है शराबें जो शराबों में मिलें
अहमद फ़राज़
ग़ज़ल
पुख़्ता तबओं पर हवादिस का नहीं होता असर
कोहसारों में निशान-ए-नक़्श-ए-पा मिलता नहीं
अकबर इलाहाबादी
ग़ज़ल
मिरे अहद में नहीं है ये निशान-ए-सरबुलंदी
ये रंगे हुए अमामे ये झुकी झुकी कुलाहें
मजरूह सुल्तानपुरी
ग़ज़ल
न दिया निशान-ए-मंज़िल मुझे ऐ हकीम तू ने
मुझे क्या गिला हो तुझ से तू न रह-नशीं न राही