आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "پبلک"
ग़ज़ल के संबंधित परिणाम "پبلک"
ग़ज़ल
परेशाँ-हाल है पब्लिक मगर दोनों ममालिक के
मिरासी क्रिकेटर फ़िल्मी-सितारे एक जैसे हैं
खालिद इरफ़ान
ग़ज़ल
मिनिस्टर हों कि चपरासी वो अच्छा हो नहीं सकता
कि पब्लिक के लिए मक्कारियाँ दोनों तरफ़ से हैं
वहिद अंसारी बुरहानपुरी
ग़ज़ल
नासिर काज़मी
ग़ज़ल
'मीरा-जी' क्यूँ सोच सताए पलक पलक डोरी लहराए
क़िस्मत जो भी रंग दिखाए अपने दिल में समोना होगा