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ग़ज़ल
बाहर दस्तक देते मौसम चुग़ली खाती तेज़ हवा
मेज़ पे रक्खी नींद से बोझल खुली किताबों जैसे दिन
इशरत आफ़रीं
ग़ज़ल
वो देखो ख़ीरगी आँखों की चुग़ली खा रही है
उजाला है शबिस्तानों के अंदर कुछ अलग सा
सय्यद मसरूर जौहर
ग़ज़ल
तुझे भूल जाने की कोशिशें कभी कामयाब न हो सकीं
तिरी याद शाख़-ए-गुलाब है जो हवा चली तो लचक गई
बशीर बद्र
ग़ज़ल
सिराज औरंगाबादी
ग़ज़ल
तिरी कज-अदाई से हार के शब-ए-इंतिज़ार चली गई
मिरे ज़ब्त-ए-हाल से रूठ कर मिरे ग़म-गुसार चले गए