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ग़ज़ल
सस्ते दामों ले तो आते लेकिन दिल था भर आया
जाने किस का नाम खुदा था पीतल के गुल-दानों पर
जाँ निसार अख़्तर
ग़ज़ल
जुरअत क़लंदर बख़्श
ग़ज़ल
मिरी पोर पोर पे तितलियाँ कई रंग छोड़ के जा चुकीं
तिरे ज़िक्र का कोई फूल था मरे रत-जगों में खिला हुआ
क़य्यूम ताहिर
ग़ज़ल
तुझे चाँद बन के मिला था जो तिरे साहिलों पे खिला था जो
वो था एक दरिया विसाल का सो उतर गया उसे भूल जा
अमजद इस्लाम अमजद
ग़ज़ल
जब तुम से मोहब्बत की हम ने तब जा के कहीं ये राज़ खुला
मरने का सलीक़ा आते ही जीने का शुऊ'र आ जाता है
साहिर लुधियानवी
ग़ज़ल
मय-कदा सुनसान ख़ुम उल्टे पड़े हैं जाम चूर
सर-निगूँ बैठा है साक़ी जो तिरी महफ़िल में है