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ग़ज़ल
नज़र है जल्वा-ए-जानाँ है देखिए क्या हो
शिकस्त-ए-इश्क़ का इम्काँ है देखिए क्या हो
क़मर मुरादाबादी
ग़ज़ल
पुर-कशिश जल्वा-ए-जानाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
जीते जी मौत का सामाँ है ख़ुदा ख़ैर करे
अज़ीम हैदराबादी
ग़ज़ल
मैं अक्स-गर-ए-जल्वा-ए-जानाना बना हूँ
ख़ुश हूँ कि मोहब्बत का जिलौ-ख़ाना बना हूँ
सय्यद नवाब हैदर नक़वी राही
ग़ज़ल
अज़ल में हो न हो ये जल्वा-गाह-ए-रू-ए-जानाँ था
कि सुब्ह-ए-हश्र भी ख़ुर्शीद का आईना लर्ज़ां था
बेख़ुद मोहानी
ग़ज़ल
ग़ुरूर-ए-जल्वा-ए-इरफ़ाँ है देखिए क्या हो
बड़े अँधेरे में इंसाँ है देखिए क्या हो
ग़ौस मोहम्मद ग़ौसी
ग़ज़ल
अगर ये सर्द-मेहरी तुज को आसाइश न सिखलाती
तो क्यूँकर आफ़्ताब-ए-हुस्न की गर्मी में नींद आती
मज़हर मिर्ज़ा जान-ए-जानाँ
ग़ज़ल
साइब आसमी
ग़ज़ल
न घटा उठी न हवा चली न ख़लिश मिटी न कली खिली
ये फ़रेब-ए-जल्वा-ए-ज़ौक़ है ये तिलिस्म-ए-शौक़-ए-बहार है
वफ़ा बराही
ग़ज़ल
न ख़ुशबू पैरहन की है न ज़ुल्फ़ों की न बातों की
हमें ये जल्वा-ए-बाला-ए-बाम अच्छा नहीं लगता